Month: June 2024
मन
नोइंद्रिय/ अंगोपांग नामकर्म के उदय से मन बनता है। हृदय स्थल पर होने के कारण ही मन को हृदय और हृदय को मन कहने लगते
सोच के भेद
1. सामान्य – बुरे को बुरा माने 2. मध्यम – अच्छे को अच्छा 3. निकृष्ट – अच्छे को बुरा 4. साधु – बुरे को भी
मांगना
सम्यग्दृष्टि कुछ मांगे तो क्या वह मिथ्यादृष्टि हो जायेगा ? भक्ति में मांगना सभ्यता है। सभ्यता व्यवहार है, संसार चलाने के लिये आवश्यक है। यदि
मन:पर्यय
मनःपर्यय ज्ञान… 1. ऋजुमति – 3 प्रकार का –> सरल मन, वचन, काय की चेष्टाओं को जाने। 2. विपुलमति – 6 प्रकार का –> सरल
समता भाव
कहावत… पानी पीने के बाद जात नहीं पूँछी जाती। ताकि समता भाव रहे/ पछतावा न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
विस्रसोपचय
विस्र = स्वभाव से उपचित(चिपकने वाले); कर्म/ नोकर्म से निरपेक्ष, कर्म/ नोकर्म परमाणुओं पर स्थित। ये रूक्ष या स्निग्ध होते हैं, इसीलिये चिपके रहते हैं।
धर्म
दया/ क्षमा धर्म कैसे ? धर्म की अंतिम परिभाषा –> वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। दया/ क्षमा आत्मा का स्वभाव है, इस अपेक्षा से
शरीरों की स्थिति
शरीरों की उत्कृष्ट स्थिति –> 1. औदारिक – 3 पल्य (भोग भूमि) 2. वैक्रियक – 33 सागर (देव व नारकी) 3. आहारक – अंतर्मुहूर्त 4.
विश्वास / श्रद्धा
भटके हुए पथिक को श्रद्धा साधु पर ही होगी। वही रास्ता किसी गुंडे ने बताया हो पर उस पर नहीं होगी। रास्ते पर आगे चल
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