Month: June 2024

मन:पर्यय

मनःपर्यय ज्ञान… 1. ऋजुमति – 3 प्रकार का –> सरल मन, वचन, काय की चेष्टाओं को जाने। 2. विपुलमति – 6 प्रकार का –> सरल

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समता भाव

कहावत… पानी पीने के बाद जात नहीं पूँछी जाती। ताकि समता भाव रहे/ पछतावा न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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विस्रसोपचय

विस्र = स्वभाव से उपचित(चिपकने वाले); कर्म/ नोकर्म से निरपेक्ष, कर्म/ नोकर्म परमाणुओं पर स्थित। ये रूक्ष या स्निग्ध होते हैं, इसीलिये चिपके रहते हैं।

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धर्म

दया/ क्षमा धर्म कैसे ? धर्म की अंतिम परिभाषा –> वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। दया/ क्षमा आत्मा का स्वभाव है, इस अपेक्षा से

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शरीरों की स्थिति

शरीरों की उत्कृष्ट स्थिति –> 1. औदारिक – 3 पल्य (भोग भूमि) 2. वैक्रियक – 33 सागर (देव व नारकी) 3. आहारक – अंतर्मुहूर्त 4.

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विश्वास / श्रद्धा

भटके हुए पथिक को श्रद्धा साधु पर ही होगी। वही रास्ता किसी गुंडे ने बताया हो पर उस पर नहीं होगी। रास्ते पर आगे चल

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संवेदनशीलता

आस्तिक्य भाव को जगाने वाले सफलतम साधु थे मुनि श्री क्षमासागर जी। जिन-जिन के अंदर उन्होंने ये भाव जाग्रत किया, वे आजतक सुसुप्त नहीं हुए

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भगवान से प्रार्थना

पूरा जीवन भगवान से प्रार्थना करते रहे…. (शांति दो – शांति दो) शांति मिली ? नहीं। मिलती तब जब भगवान ने अशांति दी होती। अशांति

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सम्यग्दर्शन के अंग

सम्यग्दर्शन के 8 अंगों में से निर्विचिकित्सा, स्थितिकरण, उपगूहन, वात्सल्य और प्रभावना मुख्यतः मुनियों से जुड़े हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति.भा. गाथा- 51)

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कर्ता / भाग्य

आदमी की कमाई में परिवारजनों/ सेवकों का भाग्य भी होता है। कमाने वाला व अन्य सब अपने-अपने भाग्य के अनुसार खाते/ पहनते/ भोगते हैं। (सुरेश)

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मंगल आशीष

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June 24, 2024

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