Month: June 2024
समता / ममता
मोही के घर में ममता तथा ज्ञानी के घर में समता रहती है। समता = सम (राग द्वेष से रहित/ सुख दुःख में समान)। ममता
मर्जी
मर्जी उन्हीं की जिन्हें मर्ज़ होता है (वे ही ज़िद करते हैं/ अड़ियल होते हैं)। भगवान की मर्जी ही तेरी अर्ज़ी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
लेश्या काल
जघन्य काल -> शुभ/ अशुभ -> अंतर्मुहूर्त। उत्कृष्ट काल –> अशुभ -> कृष्ण -> 33 सागर, नील -> 17, कापोत -> 7 सागर (2 अंतर्मुहूर्त
अर्थ
अर्थ के खर्च होने की चर्चा से भी मन व्यथित हो जाता है। कैसे बचें ? परमार्थ से जुड़कर। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
अध्यात्म/सिद्धांत ग्रंथ
अध्यात्म ग्रंथ विशेष व्यक्तियों की अपेक्षा। सिद्धांत ग्रंथ सार्वभौमिक। जानने से श्रद्धा/ सम्यग्दर्शन नहीं, मानने से। हाँ ! जानना, मानने के लिये ज़रूरी होता है।
राग-द्वेष
आँख खोलोगे तो मनोज्ञ/ अमनोज्ञ पदार्थ दिखेंगे ही, तब राग/ द्वेष के भाव होंगे ही। बचना है तो सिर/ आँख झुका कर रहना*। ब्र.संजय (आचार्य
भावना / योग्यता
भावना से मुनि पद तक पा सकते हैं पर योग्यता(वज्रवृषभ नाराच संहननादि) बिना मोक्ष नहीं। तीर्थंकर की सेवा करने के भाव तो 16 स्वर्ग तक
पुण्य / धर्म
रावण का पुण्य ज्यादा था, धर्म कम। राम/ लक्ष्मण का पुण्य कम था, धर्म ज्यादा, इसलिये विजयी हुए। क्षु. श्री विवेकानन्दसागर जी
अभव्य – सिद्ध
जिनके अभव्यपने की सिद्धि हो चुकी हो जैसे ये बात सिद्ध हो चुकी है। सिद्धि एक शक्ति है, अपनी-अपनी पूर्णता को बनाये रखने के लिये।
दोष
प्राय: सुनने में आता है अमुक व्यक्ति बहुत बुरा है। सही प्रतिक्रिया –> ऐसा है ! तो उनकी बुराइयों की लिस्ट बना कर देदें। पर
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