Month: July 2024

म्लेच्छ

म्लेच्छादि खण्डों में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन हो सकता है, सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 37)

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मोक्ष मार्ग

जहाँ दिट्ठो वहाँ पिट्ठो, यही मोक्ष को चिट्ठो। जहाँ दृष्टि, वहाँ पीठ कर लो। आज तो हम एक कदम मोक्ष की ओर बढ़ा रहे हैं,

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वेदक-सम्यग्दर्शन

जो वेदन कराये सम्यग्दर्शन का उसे वेदक-सम्यग्दर्शन कहते हैं । यह आयतनों से जुड़े रहने से बना रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान

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बदनाम

एक बुजुर्ग को गाली देने की आदत थी। इसी अवगुण से वे जाने जाते थे। उनके बच्चों को चिंता हुई। पिता की बदनामी को मिटाने

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द्रव्य/ गुण/ पर्याय

द्रव्य तथा गुण पृथक नहीं। पर्याय गुण की भी जैसे केवल ज्ञान, पर्याय द्रव्य की भी जैसे सिद्ध भगवान। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान–

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स्वयं

संसार में सबसे ज्यादा चर्चा किसकी सुनने का मन होता है? स्वयं की। तो उस शख्स से मिलने का मन नहीं करता ? कभी उससे

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क्रिया / भाव

पूजादि करते समय प्राय: हमारा उपयोग गलत जगह चला जाता है जैसे दूसरे ने क्रिया गलत कर दी(चावल की जगह बादाम चढ़ा दिये), उपयोग पूजा/

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अमरता

अमरता…. दैहिक… दीर्घ आयु, अमृत चखने से देव जैविक… पुत्र, प्रपोत्र से नामिक… जिनका नाम चलता रहता है वैचारिक.. जैसे गांधीवाद, बहुत मूल्यवान सात्विक.. सात्विकता

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अनेकांत

जो जीवन में अनेकांत पालन करते हैं वे आदर पाते हैं (क्योंकि उनसे अनबन होगी ही नहीं)। वैसे भी अनेकांत में छोटा “अ” है जो

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स्पर्शन

कल्पनाओं में दूर देश बैठे प्रियजनों का स्पर्शन अनुभव करके रोज आनंदित होते हैं। गुरुओं/ भगवान (अरहंत, सिद्धों) का क्यों नहीं है ! चिंतन

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मंगल आशीष

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July 31, 2024