Month: August 2024
अवगाहन
आकाश की अवगाहन शक्ति से संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी अनंत द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में रह रहे हैं। द्रव्य के अंदर अवगाहन/ संकोच-विस्तार स्वभाव भी
एक ही देवता
एक विधवा महिला मंदिर में फूल तथा Waste सब भगवान को समर्पित करतीं थीं। कारण ? “सर्वस्व समर्पयामि”। जब हमारा भगवान एक ही है तो
चल/अचल प्रदेश
जीव तथा पुद्गल के प्रदेश स्थिर नहीं होते। जीव में 8 अचल प्रदेश होते हैं; हालाँकि स्पंदन तो होता है, Circulation नहीं। चल चल ही
सोच
नकारात्मक ….काफ़ी अकेला हूँ। सकारात्मक …अकेला काफ़ी हूँ। (एकता-पुणे)
मुनि शिवभूति जी
शिवभूति मुनि ज्ञानावरण कर्म के तीव्र उदय से अल्पज्ञानी थे। गुरु ने “मा-रुस मा-तुस” सूत्र का चिंतन करने को कहा। सूत्र का अर्थ था, “द्वेष
संस्कृति
भारतीय संस्कृति मानवतावादी, पाश्चात्य मानववादी (मानव के लिये कितने भी जीवों का संहार करना पड़े तो करो)। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आकाश में ऊर्जा
आकाश में, अणु से स्कंध तथा स्कंधों के टूटने से अणु बनने की क्रियाएं लगातार चलती रहती हैं। उससे Space में Energy बनी रहती है।
श्रमण / श्रावक
श्रमण … मैं ही मैं हूँ (क्योंकि स्व में प्रतिष्ठित), श्रावक …तू ही तू है* ( क्योंकि गुरु/ भगवान की भक्ति की प्रधानता)। ब्र. डॉ.
चार गुण
सम्यग्दर्शन के लिये चार गुण (प्रशम, अनुकम्पा, संवेग, आस्तिक्य*)। पहले तीन गुण तो मिथ्यादृष्टि के भी हो सकते पर आस्तिक्य का संबंध सम्यग्दर्शन से ही
मौन
पशु न बोलने से दुःख उठाते हैं, मनुष्य बोलने से। आचार्य श्री विद्यासागर जी
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