Month: August 2024
श्रमण / श्रावक
श्रमण तथा श्रावक की यदि विशुद्धि बराबर हो तो भी बेहतर कौन ? श्रमण। क्यों/ कैसे ? 1. चारित्र की अपेक्षा। 2. भविष्य में और
दिल / दिमाग
सर्विस करते समय दिल और दिमाग में कई बार संघर्ष होता है क्या करें ? रेणु जैन-कुलपति प्रशासनिक निर्णय लेते समय दिमाग से काम करें,
सम्यग्दर्शन
मिथ्यात्व के ऊपर श्रद्धान करने से भी सम्यग्दर्शन हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (पाप को पाप मान लिया तो पुण्य पर श्रद्वान हो
स्वतंत्रता
स्व के तंत्र* में बंधना स्वतंत्रता है। अगर अपने तंत्र में नहीं बंधेंगे तो स्वछंदता आ जायेगी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी * नियम/ व्यवस्था/ अनुशासन
माया
माया-कषाय अंतर्मुहूर्त के लिये, माया-शल्य लम्बी अवधि के लिये। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
ज्ञान
ज्ञेय से ज्ञान बड़ा, आकाश आया छोटी आँखों में। आचार्य श्री विद्यासागर जी (दूसरी लाइन में (,) कॉमा के सही ज्ञान से अर्थ सही हो
संस्थान-विचय
गुरु/ भगवान के आकार का चिंतन करना भी संस्थान-विचय होता है। शांतिपथ प्रदर्शक
स्व/ पर/ परम
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे – “स्व” को साफ करो, “पर” को माफ करो, “परम” को याद करो। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
ऋद्धि
ऋद्धि 7 (सिद्धांत ग्रंथों में) भी 8 भी। (बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तप, बल, रस, अक्षीण, औषधि) क्रिया व विक्रिया को एक में लेने से 7
Recent Comments