Month: October 2024
मूर्तिमान दर्शन
यदि “जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय” अर्घ्य पढ़ते समय मूर्ति में मूर्तिमान के दर्शन हो जायें, तो अकाल मरण टल जाता है। ऐसे ही “संसार-ताप-विनाशनाय” अर्घ्य के समय दर्शन
अभिमान / मान / स्वाभिमान
मान चोट पहुँचाता है, मानी को चोट पहुँचती है। स्वाभिमान न चोट पहुँचाता है न उसे चोट पहुँचती है क्योंकि वह पद का सम्मान करता/चाहता
संसार / मोक्ष
ज्ञान + मोह = संसार, ज्ञान – मोह = मोक्ष। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (24 अक्टूबर)
धनतेरस
1) धनतेरस…. बाह्य-चेतना का विषय.. मिथ्यादृष्टि 2) धन्यतेरस… अंतरंग का विषय…… सम्यग्दृष्टि 3) ध्यानतेरस… व्रती लोगों का विषय जो परमात्मा बनने की राह पर हैं..
नय
द्रव्यार्थिक नय –> हर द्रव्य अपने-अपने स्वभाव में है। यानी द्रव्य के स्वभाव को देखना जैसे सिद्ध भगवान अपनी अवगाहना में (यहाँ पर्यायार्थिक नय को
वीतरागता / संवेदनहीनता
क्या वीतरागता संवेदनहीनता नहीं है ? संवेदना बाह्य है। गृहस्थ भी बाह्य में रहते हैं, उन्हें संवेदनशील होना चाहिये। साधु अंतरंगी, उन्हें वीतरागी। मुनि श्री
सुख-दुःख-जीवित मरणोपग्रहाश्च
ऊपर के सूत्र में…“च” के लिए आचार्य अकलंक देव कहते हैं –> धर्म, अधर्म आदि दूसरों पर ही उपकार करते हैं लेकिन पुद्गल ख़ुद पर
दुःख
कुछ दुःख Unavoidable होते हैं जैसे शारीरिक अस्वस्थता, आर्थिक, सामाजिक। पर ज्यादा दुःख Avoidable/ self-created/ हमारा चयन होता है, Actual में वे दुःख होते ही
मूर्ति-पूजा
जैन-दर्शन में मूर्ति पूजा नहीं, मूर्तिमान की पूजा है। इसीलिये कबीरदास जी ने जैन-दर्शन की मूर्तिपूजा पर टिप्पणी नहीं की। निधत्ति/निकाचित कर्म समाप्त हो जाते
कर्म काटना
दिगंबर साधु तपस्या में लीन थे। चोर नग्न साधु को अपशकुन मानकर उपसर्ग करने लगा। उपसर्ग समाप्त होने पर साधु ने चोर से कहा –>
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