Day: October 22, 2024

काल

जो सत्ता, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, षटगुणी हानि-वृद्धि रूप हमेशा स्व तथा सब द्रव्यों में वर्तन कराता है, वही काल है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ

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वीतरागता

आँसू चाहे खुशी के हों या दु:ख के, दृष्टि को तो धूमिल करते ही हैं। इसीलिए वीतरागता का इतना महत्व है। चिंतन

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मंगल आशीष

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