Month: October 2024
धर्म
प्रथमानुयोग –> आचार्य गुणभद्र स्वामी – जीवों की रक्षा – अहिंसा परमोधर्म – वृक्ष के लिये बीज चरणानुयोग –> आचार्य उमास्वामी – रत्नत्रय – तना
प्रभु की खोज
प्रभु खोजने* से नहीं मिलते हैं। उनमें खो-जाने** से मिलते हैं। (डॉ. सविता उपाध्याय) * ज्ञान। ** श्रद्धा/ भक्ति।
स्व-समय
पूर्ण रूप से तो स्व-समय में सिद्ध भगवान ही रहते हैं। निज में एकत्व पर से विभक्त्व। अरहंत भगवान भी चार अघातिया कर्मों का अनुभव
आत्मा
आत्मा को समझाने की आवश्यकता नहीं, वह तो ही खुद समझदार है, आत्मा को समझना है। ऐसे ही भगवान/ गुरु को समझना है। निर्यापक मुनि
व्यक्ति / अभिव्यक्ति
प्रश्न यह नहीं कि शक्ति कितनी है, सामग्री या संपत्ति कितनी है! प्रश्न है कि व्यक्ति कैसा है? यह तीनों साधन तो अधम को भी
अयश
अयश उदय इससे नहीं माना जायेगा कि लोग बदनामी कर रहे हैं। ऐसी बदनामी तो सती अंजना तथा सीता जी की भी हुई थी। उदय
द्रव्याणि
द्रव्याणि पांचवें अध्याय का दूसरा सूत्र है। पहला सूत्र कायवान अजीवों का। तीसरा “जीवाश्च”। बीच का यह (दूसरा) सूत्र Bridge है, पहले तथा तीसरे के
रसना
रसना को नागिन क्यों कहा ? इसी के चक्कर में आकर Overeating करके पेट/ सेहत में ज़हर घोलते हैं। इसी से ज़हरीले वचन निकलते हैं
काल
जो सत्ता, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, षटगुणी हानि-वृद्धि रूप हमेशा स्व तथा सब द्रव्यों में वर्तन कराता है, वही काल है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ
वीतरागता
आँसू चाहे खुशी के हों या दु:ख के, दृष्टि को तो धूमिल करते ही हैं। इसीलिए वीतरागता का इतना महत्व है। चिंतन
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