विषय
संसार में अगली अगली कक्षाओं में ज्ञान तो बढ़ता जाता है पर विषय (विषय भोग) गहरे होते जाते हैं ।
धर्म में ज्ञान बढ़े या न बढ़े पर विषय हल्के होते जाते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
यथा यथा समायाति, संवित्तौ तत्त्वमुत्तमम् । तथा तथा न रोचन्ते,
विषयाः सुलभा अपि।
– इष्टोपदेश (आचार्य पूज्यपाद स्वामी)
जैसे-जैसे चेतना में उत्तम तत्वज्ञान समाविष्ट होता है, वैसे-वैसे सुलभ विषयभोग भी अरुचिकर होते जाते हैं।
(कमल कांत)
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उपरोक्त कथन सत्य है कि संसार में अगली अगली कक्षाओं में ज्ञान तो बढ़ता है, लेकिन इससे विषय भोग गहरे होते जाते हैं।यह कथन भी सत्य है कि धर्म में ज्ञान बढ़े या न बढ़े पर विषय भोग हल्के होते जाते हैं। अतः जीवन में धर्म का ज्ञान परम आवश्यक है ताकि विषय भोग से दूर रह सकते हैं।