Category: 2010
गुणस्थान
दु:खमा-दु:खमा, उत्सर्पिणी के दु:खमा तथा म्लेच्छ खंडों में हमेशा पहला गुणस्थान ही रहता है । भोगभूमियों में चौथा गुणस्थान तक होता है । यहां ॠद्धिधारी
क्षायिक सम्यग्दर्शन की स्थिति
संसारी जीव के लिये – जघन्य स्थिति – अन्तर्मुहूर्त होती है । उत्कॄष्ट स्थिति – आठ वर्ष, एक अन्तर्मुहूर्त कम, दो पूर्व कोटी होती है ।
निसर्गज-सम्यग्दर्शन
दर्शन-मोहनीय के उपशम, क्षयोपशम या क्षय से ही उत्पन्न होता है या बाह्य निमित्त भी कारण होते हैं ? पर उपदेश को छोड़कर बाह्य
भावलिंग/वेद
प्रश्न : भावलिंग और वेद में क्या अंतर है ? उत्तर : भावलिंग – नामकर्म के उदय से, वेद – चारित्र मोहनीय के उदय से
श्रुतज्ञान
मतिज्ञान का Analysis श्रुतज्ञान है । श्रुतज्ञान के दो भेद होते हैं- शब्दज – अंग तथा अंग बाह्य , लिंगज – आकार/बाह्यरुप। पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
श्रुतज्ञान
मतिज्ञान के आलम्बन से दूसरे पदार्थों का ज्ञान होना । जैसे “घ”,” ट” वर्णों का श्रवण मतिज्ञान से होता है, पर “घट” पदार्थ का ज्ञान,
संक्रमण
ग्यारहवें गुणस्थान में मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रमण नहीं होते । कर्मकांड़ गाथा 443
अवधिज्ञान
इसे सीमाज्ञान भी कहते हैं । यह अधोगति पुदगलों को अधिकता से ग्रहण करता है, याने नीचे के रुपी पदार्थों को ज्यादा जानता है ।
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