Category: 2010
अवधिज्ञान/मन:पर्ययज्ञान
अवधिज्ञान तो पदार्थों को सीधी तौर से जानता है, पर मन:पर्ययज्ञान मन की पर्यायरुप से जानता है । स्याद्वाद
सातवां गुणस्थान
सातवें गुणस्थान में संसार से भिन्न और निवृत्तिआत्मक क्रियायें होती हैं । आत्मा से अभिन्न प्रवृत्तिआत्मक क्रियायें होती हैं । आचार्य श्री – ( सागर
कर्म का बटबारा
कर्म प्रकृतियों का एक भाग सर्वघाति को मिलता है तथा अनंत बहुभाग देशघाती को मिलता है । कर्मकांड़ गाथा : – 197
कर्म का बटबारा
( गाथा192 में कर्म के बटबारे के कम ज्यादा का Criteria ? ) जिस जिस कर्म की स्थिति अधिक, उसको अधिक भाग मिलता है ।
कर्म का बटबारा
( नीचे की गाथा में देखा कि कर्म का बटबारा सबसे अधिक वेदनीय कर्म को जाता है – इसका कारण ? ) वेदनीय सुख दुख
कर्म का बटबारा
जो भी कर्म हम करते हैं उनका बटबारा आठों कर्मों में होता है । आयु कर्म से ज्यादा नाम और गोत्र कर्म को, नाम और
पुदगल द्रव्य का ग्रहण
(नीचे की गाथा देखें – यह बात कैसे सिद्ध होगी कि जीव ने अनंत बार सब पुदगल परमाणुओं को ग्रहण किया है ?) आ.
पुदगल द्रव्य का कर्म रूप परिवर्तन
लोक के Total पुदगल द्रव्य का अनंतवां भाग ही कर्म रूप परिवर्तित होने योग्य है । आदि द्रव्य – जिसे जीव ने अतीत काल
अनाहारक
चौदहवां गुणस्थान अनाहारक होता है। जैसे Retirement से पहले मकान की Maintenance पर खर्चा बंद कर देते हैं । इसी तरह विग्रह गति में जीव
तत्व
प्रयोजनभूति वस्तु के स्वभाव को तत्व कहते हैं । जैनेन्द्र सिद्धांत कोष 2/352
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