Category: 2010
उपयोग
शुभोपयोग – प्रभातकालीन लालिमा – सूर्योदय ( मोक्ष) अशुभोपयोग – संध्याकालीन लालिमा – सूर्यास्त (गर्त) पं. रतनलाल जी इन्दौर
कर्मोदय
कर्मोदय में कर्मों को कारण ना मानकर हम नोकर्म को कारण मान लेते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
शुक्लध्यान
क्षपक श्रेणी की अपेक्षा – पहला शुक्लध्यान – दसवें गुणस्थान तक होता है, ———————-इसमें मोहनीय कर्म का नाश दसवें गुणस्थान के अंत में हो जाता
अपर्याप्तक
अपर्याप्तक अवस्था तो सबके होती है तो क्या सबके पाप प्रकॄति होगी ? अपर्याप्तक अवस्था दो प्रकार की होती है। 1. – लब्धि अपर्याप्तक –
उपयोग
एक व्यक्ति ने जिन्न सिद्ध कर लिया । पर जिन्न की शर्त थी, कि काम ना मिलने पर वह मालिक को खा जायेगा । यहां
भाव
“मिथ्यात्व” औदयिक भाव में लिया गया है, जबकि “सम्यग्मिथ्यात्व” तथा “सम्यग्प्रकृति” क्षयोपशमिक भाव में आते हैं, क्योंकि दोनौं में ही “समयक्त्व” है, जो क्षयोपशम से
अनुकम्पा
प्रश्न :- नरक में “उपाय-धर्मध्यान” नहीं होता, फिर सम्यग्दर्शन प्रकट होने के लिये “अनुकम्पा” कैसे आती है ? उत्तर :- “अनुकम्पा” बाह्य लक्षण है, आवश्यक
शरीरों की सीमा
आहारक और मनुष्यों के शरीर – मनुष्य लोक तक ही जा सकते हैं । देवों के वैक्रियक शरीर – त्रसनाली तथा सोलहवें स्वर्ग से तीसरे
मिश्र-गुणस्थान
कोई पत्नि पति के प्रति पूर्ण समर्पित हो, सेवा और प्रेम में कोई कसर नहीं, पर दूसरे पुरुष से भी प्रेम करती हो ।
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