Category: 2010

जातिस्मरण/देवऋद्धि

जातिस्मरण देवों में पैदा होते ही अन्तर्मुहूर्त में होता है । अवधिज्ञान तथा देवऋद्धि-दर्शन पैदा होने के अन्तर्मुहूर्त बाद होता है । जिनभाषित – 6/10

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उदीरणा

उदीरणा तीन प्रकार की होती है । 1. हर कर्म के उदय के साथ उदीरणा होती है । 2. अकाल मृत्यु के समय आयुकर्म के

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परमाणु/कालाणु में भेद

1. परमाणु मूर्तिक होता है, जबकि कालाणु अमूर्तिक होता है । 2. परमाणु एक प्रदेश में अनंत रह सकते हैं, जबकि कालाणु एक ही रहता

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अवग्रह/धारणा

क्या अवग्रह के बाद धारणा सीधी हो सकती है ? हाँ, कुछ भी हो सकती है, कोई सी भी Stage हो सकती है ।  त.सू.टीका

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प्रायोग्य-लब्धि

  6 द्रव्यों और 9 पदार्थों के स्वरूप के विचारने से हुये परिणामों से, सब कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति कम होकर अन्त:कोड़ाकोड़ी सागर तथा अप्रशस्त

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गुणश्रेणी निर्जरा

  जो सम्यग्दर्शन के अभिमुख खड़ा है ,  उनके गुणश्रेणी निर्जरा होती है । अन्य निरतिशय मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं । पं. रतनचंद्रजैन – व्य.कृ.पेज 107

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देवों का जन्म

देवों का जन्म एक सम्पुट आकार वाली ( Special आकार जैसे दौनों हाथों को नारियल की Shape में जोड़ें ) विशेष शय्या पर होता है, जो

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एकांत/अनेकांत

सम्यक्-एकांत      – जैसे व्यय होते हुये भी अनंत का क्षय नहीं होता है । मिथ्या-एकांत       – जैसे वस्तु सर्वथा नित्य ही है, या अनित्य ही

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तीर्थंकर-प्रकृति

  तीर्थंकर-प्रकृति घोर तप करने से नहीं बंधती बल्कि अपाय और विपाक-विचय-धर्मध्यान से बंधती है ।

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मंगल आशीष

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August 13, 2010

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