Category: 2010
प्रथमोपशम-सम्यग्दर्शन
5,6 या 7 प्रकृतियों के उपशम से होता है । 6 प्रकृतियों का उपशम – जीव के 1 बार मिथ्यात्व में आने पर यदि सम्यक-प्रकृति
जातिस्मरण/देवऋद्धि
जातिस्मरण देवों में पैदा होते ही अन्तर्मुहूर्त में होता है । अवधिज्ञान तथा देवऋद्धि-दर्शन पैदा होने के अन्तर्मुहूर्त बाद होता है । जिनभाषित – 6/10
उदीरणा
उदीरणा तीन प्रकार की होती है । 1. हर कर्म के उदय के साथ उदीरणा होती है । 2. अकाल मृत्यु के समय आयुकर्म के
परमाणु/कालाणु में भेद
1. परमाणु मूर्तिक होता है, जबकि कालाणु अमूर्तिक होता है । 2. परमाणु एक प्रदेश में अनंत रह सकते हैं, जबकि कालाणु एक ही रहता
अवग्रह/धारणा
क्या अवग्रह के बाद धारणा सीधी हो सकती है ? हाँ, कुछ भी हो सकती है, कोई सी भी Stage हो सकती है । त.सू.टीका
प्रायोग्य-लब्धि
6 द्रव्यों और 9 पदार्थों के स्वरूप के विचारने से हुये परिणामों से, सब कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति कम होकर अन्त:कोड़ाकोड़ी सागर तथा अप्रशस्त
गुणश्रेणी निर्जरा
जो सम्यग्दर्शन के अभिमुख खड़ा है , उनके गुणश्रेणी निर्जरा होती है । अन्य निरतिशय मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं । पं. रतनचंद्रजैन – व्य.कृ.पेज 107
देवों का जन्म
देवों का जन्म एक सम्पुट आकार वाली ( Special आकार जैसे दौनों हाथों को नारियल की Shape में जोड़ें ) विशेष शय्या पर होता है, जो
एकांत/अनेकांत
सम्यक्-एकांत – जैसे व्यय होते हुये भी अनंत का क्षय नहीं होता है । मिथ्या-एकांत – जैसे वस्तु सर्वथा नित्य ही है, या अनित्य ही
तीर्थंकर-प्रकृति
तीर्थंकर-प्रकृति घोर तप करने से नहीं बंधती बल्कि अपाय और विपाक-विचय-धर्मध्यान से बंधती है ।
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