Category: 2014
सम्यक् लब्धि/विशुद्धता
कर्मों की निर्जरा सम्यक् लब्धि की तुलना में विशुद्धता से ज्यादा होती है । जैसे उपशम श्रेणी के 8, 9, 10 गुणस्थान वाले से क्षपक
गोत्र
श्री धवला जी के अनुसार 6 भेद हैं । उच्च-उच्च : गोत्र उच्च, कर्म भी उच्च उच्च : पैदा उच्च में, कर्म साधारण उच्च-नीच :
कुशील
प्रतिसेवना-कुशील-साधु में दोष तथा कषायें भी होती हैं। जबकि कषाय-कुशील-साधु में दोष नहीं होते सिर्फ कषायें होती हैं, यानी शुद्धता अधिक। पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
मोहनीय का क्षय
दर्शन मोहनीय का क्षय – 4 से 7 वें (किसी एक में) गुणस्थान में । चारित्र मोहनीय का 8 से 10 वें (पूर्ण 10 के
बंध
सम्यक प्रकृति से कोई बंध नहीं होता । दर्शन मोहनीय के सिर्फ मिथ्यात्व तथा चारित्र मोहनीय (अविरति, प्रमाद, कषाय) से ही कर्म बंध होते हैं
पर्याय/द्रव्य
पर्याय द्रव्य की एक अवस्था है । जैसे फल को देखकर बीज का निर्णय होता है, ऐसे ही पर्याय को देखकर द्रव्य का और द्रव्य
मतिज्ञान
मतिज्ञान वैभाविक गुण है । (कुमतिज्ञान और सुमतिज्ञान दोनों) पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
समयप्रबद्ध
एक समय में बंधने तथा झरने वाली वर्गणाऐं । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
असंख्यातगुणी निर्जरा
असंख्यातगुणी निर्जरा यानि दूसरे समय की निर्जरा, समय से पहले असंख्यातगुणी निर्जरा । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
बंध
मोह (दर्शन मोहनीय से मिथ्यात्व, चारित्र मोहनीय से अविरति, प्रमाद, कषाय) तथा योग से ही बंध होता है । पाठशाला
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