Category: 2019
जीव
निगोदिया – सूक्ष्म भी, बादर भी । निगोदिया अपर्याप्तक भी (एक सांस में 18 बार जन्म मरण सारे जीवों का), पर्याप्तक भी – अंतर्मुहूर्त आयु
अनुजीवी गुण
अनुजीवी गुण* आत्मा के ही होते हैं । ये हैं – अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य । मुनि श्री सुधासागर जी * जो आत्मा
आत्मा / रागादि
आत्मा और रागादि का संबंध अशुद्ध निश्चय नय से कहा जाता है। इसे व्यवहार नय भी कहते हैं। ज्ञानशाला
जीव के गुण
जीव के गुण – ज्ञान, दर्शन । चारित्र क्यों नहीं कहा ? डॉ. एस. एम. जैन 1) ये मुख्य/चेतन गुण हैं । वैसे तो अनंत
सासादन में ज्ञान
सासादन में ज्ञान मिथ्याज्ञान क्यों कहा है जबकि मिथ्यात्व तो उदय में आया नहीं ? अनंतानुबंधी के उदय की अपेक्षा से कहा है । पं.
सच्ची विनय
सच्ची विनय नय-ज्ञान से ही आती है । तब किसी एक पक्ष के प्रति आग्रह नहीं रह जाता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
भेद-विज्ञान
व्यवहार तथा निश्चय नय से जब हम पर-पदार्थ को जानेंगे तो एक भेद रेखा खिंच जायेगी, इसी का नाम “भेद-विज्ञान” है । मुनि श्री प्रणम्यसागर
अर्थ/व्यंजन पर्याय
अर्थ-पर्याय अगुरूलघु गुण का विकार, व्यंजन-पर्याय नोकर्म का विकार । मुनि श्री सुधासागर जी
तीर्थंकर प्रकृति में अनुभाग
तीर्थंकर-प्रकृति बंध में अनुभाग अलग अलग होता है (अलग अलग व एक तीर्थंकर का), श्रेणी चढ़ते समय उत्कृष्ट हो जाता है, सामान्यकेवली का भी ।
उपयोग
अशुभपयोग -> औदयिक भाव, शुभोपयोग -> क्षयोपशमिक, शुद्धोपयोग -> क्षयोपशमिक/औपशमिक/क्षायिक (श्रेणी चढ़ते समय) ।
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