Category: 2019
सम्यक्ज्ञान
इसके भी 8 अंग होते हैं, (शब्दाचार, अर्थाचार, तदुभयाचार, कालाचार, विनयाचार, उपधानाचार – बार बार स्मरण करना, बहुमानाचार, अनिन्हवाचार) । यदि उनका पालन ना किया
धार्मिक क्रियायें
मिथ्यादृष्टि को पुण्य-बंध, संसार बढ़ाने में निमित्त, सम्यग्दृष्टि के संवर/निर्जरा/सम्यक् वर्धनी ।
शुद्धोपयोग
शुद्धोपयोग के गुणस्थानों के बारे में 4 मत हैं – 1) 7 से 2) 8 से 3) 11 में 4) 12 में । मुनि श्री
नय
उमास्वामी आचार्यादि ने शास्त्र नय से नहीं, नयों की अपेक्षा लिखे हैं । व्यवहार नय भोजन बनाना, निश्चय उसे खाना । दोनों नयों का उपदेश
शुभ/शुद्धोपयोग
सच्चे देव, गुरु, शास्त्र के प्रति राग – शुभोपयोग उनके गुणों को अपने में उतारना – शुद्धोपयोग
सामायिक/छेदोपस्थापना/परिहार विशुद्धि
सामायिक – समस्त पाप कार्यों का त्याग, छेदोपस्थापना – पाँच पापों का त्याग, परिहार विशुद्धि – हिंसासे पूर्ण निवृत्ति (तत्वार्थ सूत्र टीका – 9/18) छठे
प्रत्येक / साधारण
जिस नामकर्म से ऐसा शरीर मिलता है जिसे एक ही जीव भोगे, उसे प्रत्येक शरीर कहते हैं । साधारण शरीर को अनेक जीव भोगते हैं,
सामायिक
1. अभ्यास रूप – दूसरी प्रतिमा तक, दो बार 2. सामायिक प्रतिमा – तीसरी प्रतिमा, तीन बार 3. सामायिक आवश्यक – मुनियों के, तीन बार
अरहंत में दोष
13वें गुणस्थान में कर्म बांध नहीं रहे, पर बंध रहे हैं, जैसे तेल लगे शरीर पर धूल जम रही हो। 14वें गुणस्थान में बंध तो
परिणमन
धर्मद्रव्य में परिणमन, स्वयं के स्वभावानुसार तथा दूसरे द्रव्यों की गति से भी समझना चाहिए । मुनि श्री सुधासागर जी ऐसे ही केवलज्ञान में भी
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