Category: 2010

मन

मन को इंद्रिय क्यों नहीं, अनिंद्रिय क्यों कहा है ? मन इंद्रिय – धर्म वाला नहीं है । मन का विषय अनियत है, सिर्फ निमित्त

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इंद्रिय

नामकर्म से रची, वह इंद्रिय है, आत्मा का लिंग इंद्रिय है । आत्मा कर्मों से मलिन है इसलिये पदार्थों को ग्रहण करने में असमर्थ है,

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अंग/उपांग

अंग/उपांग को इंद्रियों में क्यों नहीं लिया ? जो उपयोग में आए वह इंद्रिय है, अंग/उपांग तो क्रियाओं के साधन हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका

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सम्यकचारित्र

सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र युगपत भी होते हैं तथा सम्यक्चरित्र बाद में भी होता है । बाई जी

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प्रायोग्य लब्धि

प्रायोग्य लब्धि वाला आयु को छोड़ बाकी सात कर्मों की स्थिती को घटाकर अंतः कोड़ा कोड़ी सागर कर लेता है । कर्मकांड़ गाथा : –

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सम्यग्दर्शन

8 अंगों में से कोई भी अंग जरा सा भी कम रहा तो, कार्य की सिद्धी नहीं होगी पर लाभ तो होगा, सम्यग्द्रष्टि जैसे लगोगे

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आत्मा का वैभव

रूप के मान में आत्मा के वैभव का सम्मान नहीं किया क्योंकि यह वैभव दिखता नहीं है ।

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आत्म वैभव

समयसार में कहा है – तत्व तत्व येव, चित् चित् मेव । यानि तत्व तत्व है, आत्मा – आत्मा है । आत्म वैभव – आत्म

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मान

सुंदरता अपनी आंखों से या दूसरे की आँखों से देखने की चीज है क्या ? कोई झूठी तारीफ़ भी कर दे तो हमारे मान की

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अवधिज्ञान

स्पर्श, रस, रूप और गंध का रस अवधिज्ञान से नहीं आता, इंद्रियों से ही आता है । इन्द्रिय ज्ञान Original है और अवधिज्ञान Carbon Copy

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मंगल आशीष

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April 13, 2010

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