Category: 2010
प्रमाद के 15 भेद
5 इन्द्रियों के विषयों में तल्लीनता, 4 विकथा – राज, चोर, स्त्री, भोजन 4 कषाय – क्रोध, मान, माया, लोभ, निद्रा, प्रणय । प्रमाद हिंसा
प्रमाद ( असावधानी )
शुभ कार्यों में निरूत्साह या संज्ज्वलन कषाय के तीव्र उदय से ।
मिथ्यात्व/अविरति/कषाय/योग
मिथ्यात्व – 1 गुणस्थान में, अविरति – 1 से 4 तथा 5 गुणस्थान में आधी ( मिश्र ), कषाय – 1 से 10 गुणस्थान में,
कर्म-प्रकृति
जो कर्म-प्रकृतियां आगामी भव में उदय योग्य नहीं होतीं, उनका वर्तमान भव में बंध नहीं होता । जैसे लब्धिपर्याप्त तिर्यंच को देवगति, गत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियक
तीर्थंकर प्रकृति
तीर्थंकर प्रकृति का बंध पहले नरक में तो अपर्याप्त अवस्था में बंधता रहता है , ( क्षायिक सम्यग्द्रष्टि के जैसे श्रेणिक महाराज ) दूसरे और तीसरे नरक
तीर्थंकर प्रकृति
तीर्थंकर प्रकृति का बंध प्रारंभ तो मनुष्य पर्याय में ही होता है, चौथे से सातवें गुणस्थान में । बाद में तीन गतियों ( तिर्यंच के अलावा
तीर्थंकर प्रकृति
उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक सम्यग्दर्शन, तीनों में बंधती है ।
अनंतानुबंधी कषाय
अनंतानुबंधी कषाय दुमुखी है – सम्यक्त्व व चारित्र दौनों को सांप की तरह दौनों मुँह से खाती है । मुनि श्री आर्जवसागर जी
नाड़ी
लोक नाड़ी – 14 राजू ऊँची होती है । त्रस नाड़ी – 13 राजू – 60 योजन ( 3 वातवलय X 20 योजन) राजू |
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