Category: 2019
सम्मूर्च्छन
ढ़ंके भागों में सम्मूर्च्छन से ज्यादा उत्पत्ति होती है, इसीलिये स्त्रियों में सम्मूर्च्छन से ज्यादा उत्पत्ति होती है । मुनि श्री सुधासागर जी
अपकर्षण
अपकर्षण में …. पाप प्रकृतियों की स्थिति अनुभाग दोनों कम होते हैं, पुण्य की स्थिति तो कम होती है पर अनुभाग बढ़ जाता है ।
मरणांतक समुद्धघात
मरणांतक समुद्धघात चारों गतियों के जीवों को हो सकता है, सर्वार्थसिद्धि तक के जीवों को होता है । ये जीव पहले ही आयुबंध किये होते
मिथ्यात्व के 5 भेद
मिथ्यात्व के 5 भेद ग्रहीत तथा अग्रहीत दोनों में घटित होते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
आत्मा से कर्मबंध
आत्मा से 8 प्रकार के कर्म तो हर समय बंधे रहते हैं, पर नोकर्म/भाषा/मनोवर्गणायें कभी बंधी रहती हैं कभी नहीं, जैसे विग्रहगति, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, असंज्ञी
निगोद के कारण
इतर-निगोद जाने का कारण तो तीव्र पाप है, पर नित्य-निगोद में जीव स्वभाववश रहता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म / चारित्र
चारित्र = कर्म बंध की क्रियाओं को छोड़ना (श्रावकों को अशुभ, श्रवणों को शुभ भी ), धर्म = जो जीव को इष्ट स्थान में धरता
शुभ/अशुभ लेश्या
अशुभ लेश्या वाले बुद्धिप्रधान, पड़ी चीजें उठाने का मन । शुभ लेश्या वाले ज्ञान/धर्म/विवेक प्रधान, पड़ी चीजें लौटाने का मन । शुभ लेश्या पुरुषार्थ से
वेद
वेद को (नो) कषाय में क्यों लिया गया ? वेद से कषाय और कषाय से वेद के भाव आते हैं । द्रव्य वेद से भी
निमित्त / धर्म / साधक
निमित्त 2 प्रकार के – जैसे घड़े के लिए… 1) साधन रूप – चाक, 2) उपादान रूप – मिट्टी का लोंदा । ऐसे ही साधक
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