Tag: ब्र. नीलेश भैया
क्रिया
हाथ पैर तो तैरने वाला भी मारता है और जिसे तैरना नहीं आता वो भी । फिर दूसरा ड़ूबता क्यों है ? हाथ पैर सलीके
सहनशीलता
झील को पत्थर स्वीकार तो करने होंगे , पर तरंगे न उठें । उठें ,तो पीछे हट जाओ; फिर पत्थर का आवाह्न करो । ब्र.
मोक्षमार्ग
रेगिस्तान है मोक्षमार्ग, एकाकी यात्रा । लौटने के लिये साथी चाहिए/बगीचा चाहिए । (या बगीचे/साथी की चाह पीछे लौटा देती है) ब्र. नीलेश भैया
स्वभाव
जिसमें थकें नहीं । भोजन करने में, हंसने में भी थकान है । मौन में नहीं – स्वभाव है । ब्र. नीलेश भैया
ऊँचाइयाँ
अपना कद इतना ऊपर कर लो कि वहाँ पत्थर पहुँच ही ना पाऐं । यदि अभी लग रहे हैं पर आप दु:खी नहीं हो रहे,
धर्म/विज्ञान
योग यानि जोड़, धर्म का पर्यायवाची है, धर्म संश्लेषणात्मक है, विज्ञान विश्लेषणात्मक (तोड़ता) है । ब्र. नीलेश भैया
आचरण
आचरण को आगे के कमरे में रखो, आत्मा को पिछले कमरे में । दौनों को एक कमरे में रख लिया तो आत्मा रागी द्वेषी बन
समतल
हमें समतल होना होगा (कमजोरियों के गड़्ड़े भरने होंगे, घमंड़ के टीले ढ़हाने होंगे) तभी समता भाव आयेगा – प्रिय/अप्रिय से, सुख दु:ख में स्थिरता
हवस
सेठ हुकुमचंद्र जी के सात मिल थे, आठवें मिल खोलने से पहले उन्होनें अपनी पत्नी से सलाह ली । पत्नि – सात मिल सात नरक
योगी/भोगी
योगी जुड़ता नहीं, जुड़ाव को देखता है । भोगी जुड़ता है । ब्र. नीलेश भैया
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