Tag: आचार्य श्री विद्यासागर जी
निर्वेग
वेग में तो पढ़े/बिना पढ़े सब बराबर हो जाते हैं । विकलता के साथ तो धार्मिक क्रियायें/वैराग्य भी सही नहीं है । आचार्य श्री विद्यासागर
भगवान
हम सबका पता भगवान के पास रहता है । गुम जाओ/अपने को पहचान ना पाओ तो उनके पास पहुँच जाओ, सब अपने अपने घर शीघ्र
व्यक्ति/व्यक्तित्व
व्यक्ति और व्यक्तित्व में उतना ही अंतर है, जितना जमीन और आसमान में । आचार्य श्री विद्यासागर जी
क्षमा
मनुष्य ही क्षमा धारण कर सकते हैं, देवता भी नहीं । देवता तो अमृत पीकर भी ईर्ष्या करते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
कर्मफल
केटली में पानी जग से भरते हैं, पर निकलता टोंटी में से है, धीरे धीरे देर तक । (कर्मफल तो एक साथ बंधता है, पर
उपवास
उपवास करने से मौलिक तत्व बाहर आने लगते हैं । ना कर पाओ तो जलोपवास कर सकते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
घर/आश्रम
घर को आश्रम बनायें, पर आश्रम को घर ना बनायें आचार्य श्री विद्यासागर जी
आस्था
जब तक परिग्रह में आस्था रहेगी, आत्मा में आस्था आ ही नहीं सकती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
तप
समुद्र का खारा पानी पीने योग्य नहीं, जब तपता है तब मीठा बनकर जीवन में बहार ला देता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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