Tag: जीवन
जीवन
बचपन में – ज्ञानार्जन, युवावस्था में – धनार्जन, वृद्धावस्था में – पुण्यार्जन (करना तो चाहिये तीनों अवस्थाओं में )
जीवन
बालावस्था – ज्ञानार्जन, युवावस्था – धनार्जन, वृद्धावस्था – पुण्यार्जन
जीवन से प्रेम
जीवन से प्रेम तो साधू ही करते हैं क्योंकि वे उसकी क़ीमत जानते हैं/सुख में रहते हैं । भिखारी/दुखी के मरने पर सब संतोष करते
जीवन
जीवन एक “गणित” है। साँसें “घटती” हैं, अनुभव “जुड़ते” हैं । अलग अलग “कोष्ठकों*” में बंद हम बुनते रहते हैं “समीकरण**”, लगाते रहते हैं “गुणा-भाग”।
जीवन और मृत्यु
जीवन एक बुलबुला है, किसी का छोटा किसी का बड़ा, मृत्यु, उसमें छेदा गया काँटा है । जो अपने को बड़ा मानता है, वह भी
जीवन
गोपालदास नीरज जी की एक रचना…… छिप-छिप अश्रु बहाने वालों! मोती व्यर्थ लुटाने वालों! कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
जीवन
जीवन, मृत्यु की ओर जाने की अविरत यात्रा है । क्या हम जीवन भर, सब कुछ मृत्यु के लिये ही नहीं कर रहे !!
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