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संयम / तप
संयम बाड़ है, पापों को रोकने के लिये । तप अग्नि है, उन्हें जलाने के लिये, पर पुण्य सबसे अंतिम समय में जलते हैं ।
व्रत / संयम / तप
व्रत – Break, संयम – सावधानी पूर्वक Driving, तप – Full Speed से Drive करना । संयम में मन मोड़ा जाता है, तप में मन
साधना / तप / ध्यान
साधना – मन को साधना, तप – इच्छा निरोध, ध्यान – एक विषय पर एकाग्रता । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
चिंतन/तप और विशुध्दता
नवनीत मथने पर ऊपर आ जाता है, पर पूरा नहीं; घी तपने पर पूरा उठ जाता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
तप
प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी ने अपनी मुनि अवस्था में 1920 से 1955 तक 35 वर्षों में, आहार सिर्फ 9 वर्ष 6 माह ही किया ।
तप
अग्नि अशुद्धि को ही जलाती है, शुद्ध को नहीं । सोने को, सीता जी को (अग्नि परीक्षा के समय), आत्मा को नहीं जलाती, शरीर को
तप
लोहा यदि पड़ा रहे तो जंग लग जाती है । उसे तपाकर यदि उसकी सुई/चाबी बना ली जाये तो, जोड़ने/गुंथियों के ताले खोलने जैसी उपयोगी
तप
घी और रूई मंगल नहीं हैं, पर जब दीपक में जलने लगती हैं, तो मंगल बन जाती हैं । तप का यही महत्व है । मुनि
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