Tag: दान

दान

कर बोले कर ही सुने, श्रवण सुने नहीं ताय । ( एक हाथ जब दूसरे हाथ की नब्ज़ देखता है तब कान को भी आवाज़

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दान

वृक्ष बार बार फल देते हैं, दान भी बार बार देना चाहिये, जो व्यवहार है । व्यवहार बताता है, निश्चय गूंगा होता है । आचार्य

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दान

श्री आतिफ़ ( आशीषमणी) के मित्र  Canada में कार्यरत हैं, मुझसे मिलने बस से आ रहे थे जबकि घर में गाड़ीयां थीं । पूछने पर बताया

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दान/त्याग

दान त्याग से पहले की स्थिति है । दान आंशिक है तथा त्याग पूर्ण है । नहीं छोड़ोगे तो छूट जायेगा ।

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धर्म-पुरूषार्थ

शुभ सरस्वती है तथा लाभ लक्ष्मी है । पर हम सब लाभ ही लाभ के पीछे लगे रहते हैं । शुभ बढ़ा लो ( अपने

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मंगल आशीष

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