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सुख/संतोष
सुख की चाहना द्वंद पैदा करती है, संतोष की चाहना शांति । (श्रीमती दीपा)
दुनिया का सच
लोग दूल्हे के तो आगे चलते हैं, पर अर्थी के पीछे। दुनिया सुख में तो आगे रहती हैं, पर दुख में पीछे हो जाती है
सुख
इतिहास कहता है – भूत में सुख था, विज्ञान का कहना है – भविष्य में सुख होगा, धर्म का कहना – आज में सुख है।
सुख/दुख
सुख/दुख में रहना सामान्य बात है। दुख सह लिए , तो फायदे में, सुख सहे , तो घाटा। चिंतन
भोग/सुख
रावण ने पूरी ज़िंदगी भोग भोगे, राम ने वनवास । रावण को हर साल रामलीला मैदान में जलाया जाता है, राम को मोक्ष सुख हमेशा
सुख
थोड़े से, क्षणिक सांसारिक सुख के बदले में अनंत/शास्वत आत्मिक सुख को छोड़े/भूले हुये हैं । ऐसा ही है जैसे मंज़िल के रास्ते में थोड़ी
मज़ा/सुख/आनंद
मज़ा – मन को प्रफुल्लित करता है, सुख – शरीर को प्रफुल्लित करता है, आनंद – आत्मा को प्रफुल्लित करता है । मन का मज़ा,
सुख / शांति
जितनी उपेक्षा करोगे उतनी सुख,शांति पाओगे । इसका अर्थ यह नहीं कि घर वालों से संबंध ही छोड़ दें, उनसे बस मोह कम कर दें/
सुख
ढ़ाई वर्षीय तनुशा बड़ों के साथ बैठी थी । उसके छोटे नाना धार्मिक चर्चा कर रहे थे । तनु बोर हो रही थी । बड़ों
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