Tag: गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
चोरी और अचौर्य
बिना अनुमति दूसरे की चीज़ लेना चोरी, पर बिना अनुमति, दूसरे की वस्तु के ग्रहण का, भाव भी नहीं करना, अचौर्य – धर्म । गुरुवर
मान/अपमान
अपमान सहना कठिन है, पर मान को सहना उससे भी कठिन है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
गुरू मुनि श्री क्षमासागर जी
ब्र. चेतन भैया (अब मुनि श्री प्रणीतसागर जी) दीक्षा लेने से पहले बता रहे थे – आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज कहते हैं – “पंचम
क्रोध
किसी को कुँऐ में गिरता देख, तुम भी कुँऐ में गिरते हो ? यदि नहीं, तो किसी को क्रोध करते देखकर क्रोध क्यों करते हो
कर्म
कर्म उनको पैदा करने वाले से बड़े नहीं होते । जो पैदा करना जानता है वह उन्हें समाप्त भी कर सकता है । गुरुवर मुनि
संसार भ्रमण
जो बच्चे कक्षा में बार बार फेल होते हैं, उन्हें उसी कक्षा में बार बार रहना परता है । यदि हम कर्मोदय में बार बार
सुख
थोड़े से, क्षणिक सांसारिक सुख के बदले में अनंत/शास्वत आत्मिक सुख को छोड़े/भूले हुये हैं । ऐसा ही है जैसे मंज़िल के रास्ते में थोड़ी
रुकना
रुकते तो मेले में हैं, संसार के मेले में गति कहाँ ? इसीलिये कहा है – रुकना मृत्यु है, मुक्ति से दूर होना है ।
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