अचित्त करने में एकेन्द्रियों की हिंसा तो होती है पर एकेन्द्रिय ज्यादा देर तक बने रहें तो त्रस जीवों की उत्पत्ति में भी कारण बनते हैं।
सावध लेशो बहु पुण्य लाभो।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
Share this on...
One Response
अचित का मतलब प़ासूक किये जाने पर जीव रहित होता है।हिंसा का तात्पर्य प़माद के वशीभूत होकर जीवों के प्राणों का वियोग या पीड़ा पहुंचाना होता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य।
जैन धर्म अहिंसा का प्रतीक है, अतः हिंसात्मक कारणों से बचना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
One Response
अचित का मतलब प़ासूक किये जाने पर जीव रहित होता है।हिंसा का तात्पर्य प़माद के वशीभूत होकर जीवों के प्राणों का वियोग या पीड़ा पहुंचाना होता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य।
जैन धर्म अहिंसा का प्रतीक है, अतः हिंसात्मक कारणों से बचना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।