शब्द / भाव
सेठ की कोठी के पास ही गरीब की झोंपडी थी ।
गरीब लडके की माँ मरी तो उसके लड़के ने अपने शब्दों में दुःख ज़ाहिर किया कि… तूने पिता के मरने के बाद दूसरों के घरों में झाड़ू पोंछा करके मुझे पाला आदि, अब जब मेरा करने का समय आया, तू चली गयी…।
लोगों ने उसकी भावनाओं की बहुत तारीफ़ की ।
सेठानी के मरने पर उस सेठ के लडके ने भी अपनी तारीफ़ कराने के लिये गरीब लड़के वाले शब्द ही दोहरा दिये… !
हम भी तो भगवान की स्तुति दूसरों के शब्दों में ही करते हैं,
चाहे स्तुति रचयिता के हालात हमारे लिये उपयुक्त हों या न हों ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
One Response
जैन धर्म में भावनाओं को ही अधिक महत्व दिया गया है,भावनायें अशुभ और शुभ होती हैं, इनका जीवन के परिणमन में बहुत महत्वपूर्ण roll है।
अतः सभी भगवान् की स्तुति दूसरों के शब्दों में ही करते हैं, चाहे स्तुति रचयिता के हालात हमारे लिए उपयुक्त हों या न हों।