अवगाहन

आकाश की अवगाहन शक्ति से संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी अनंत द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में रह रहे हैं। द्रव्य के अंदर अवगाहन/ संकोच-विस्तार स्वभाव भी उसमें सहायक होता है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/9)

Share this on...

One Response

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अवगाहन को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

August 31, 2024

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031