“मारीच” वह…. जो भगवान ने कहा, वह नहीं कहे।
यही अवर्णवाद है।
“महावीर” वह…. जो भगवान (पूर्व तीर्थंकरों) ने कहा, वही कहें।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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अवर्णवाद का तात्पर्य गुणवान पुरुषों में मिथ्या दोषों का लगाना होता है।केवली, श्रुति,संघ और देवों के साथ अवर्णवाद करना उचित नहीं होगा। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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अवर्णवाद का तात्पर्य गुणवान पुरुषों में मिथ्या दोषों का लगाना होता है।केवली, श्रुति,संघ और देवों के साथ अवर्णवाद करना उचित नहीं होगा। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।