असत्य/उभय – मन/वचन योग
असत्य/उभय-मन/वचन योग का मूलकारण → ज्ञान पर आवरण
(दर्शन तथा चारित्र मोहनीय इसलिये नहीं कहा क्योंकि ये संयमी के भी पाये जाते हैं – जीवकांड ग्रंथ पेज – 130)
असत्य… तीव्रतर कर्मोदय से, उभय-तीव्र, अनुभय-मंद तथा सत्य मंदतर कर्मोदय से।
ये सम्यग्दृष्टि/ मिथ्यादृष्टि/ छद्मस्थ अवस्था (12 गुणस्थान) में पाये जाते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड़ गाथा- 227)
One Response
मुनि महाराज जी ने असत्य/उभय मन वचन योग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!