दोषों में मौन रहना और गुणों का निरीक्षण करना ही आत्मकल्याण में तत्परता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आत्मकल्याण का तात्पर्य जो वस्तु के स्वरूप में निहित हो अर्थात उससे प़थक न किया जा सके। आत्मा के स्वरूप या जीव में चेतना। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि दोषों में मौन रहना और गुणों का निरीक्षण करना ही आत्मकल्याण में तत्परता है। अतः जीवन में आत्महित में लगे रहने से जीवन का कल्याण हो सकता है।
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आत्मकल्याण का तात्पर्य जो वस्तु के स्वरूप में निहित हो अर्थात उससे प़थक न किया जा सके। आत्मा के स्वरूप या जीव में चेतना। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि दोषों में मौन रहना और गुणों का निरीक्षण करना ही आत्मकल्याण में तत्परता है। अतः जीवन में आत्महित में लगे रहने से जीवन का कल्याण हो सकता है।