कर्म आत्मा में, तो आत्मा के क्यों नहीं ?
चोर हमारे घर में तो क्या चोर मेरा, या घर चोर का !
चोर आते क्यों हैं ?
धन दौलत की वजह से ।
कर्म आते हैं रागद्वेष भावों से ।
चिंतन
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One Response
जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों से वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है।
मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करना है यह सब उसकी क़िया या कर्म है।कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।कर्म तीन प्रकार के होते हैं, द़व्य कर्म, भाव कर्म और नो-कर्म। यह कथन सत्य है कि कर्म आत्मा में तो आत्मा के क्यो नही, लेकिन कर्म राग द्वेष के भावों से आते हैं।
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों से वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है।
मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करना है यह सब उसकी क़िया या कर्म है।कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।कर्म तीन प्रकार के होते हैं, द़व्य कर्म, भाव कर्म और नो-कर्म। यह कथन सत्य है कि कर्म आत्मा में तो आत्मा के क्यो नही, लेकिन कर्म राग द्वेष के भावों से आते हैं।