आत्मा
आत्मा की पहचान प्राणों से होती है इसलिए व्यवहार नय से उसे “प्राणी” कहा।
जिस अवस्था में १० प्राणों में से कोई प्राण धारण नहीं करती, निश्चय-नय से सिर्फ चैतन्य-प्राण को धारण करती है।
ऐसे ही गतियों में भ्रमण करने से उसे “जंतु” कहते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 366)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने आत्मा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में आत्मा को जानकर अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहिए।
आत्मा, निश्चय-नय से सिर्फ चैतन्य-प्राण को kab धारण करती है ?
जब दसों प्राण छूट जाते हैं, सिद्ध अवस्था में।
Okay.