वह ज्ञान ही नहीं जिसमें आत्म-ज्ञान न हो।
पापों से यदि मुक्त्ति में निमित्त न बने, वह ज्ञान किस काम का !
वह ज्ञान बेकार है, जिसमें क्रिया न हो।
जो पुण्य और पाप को एक मान कर चल रहे हैं वे ज्ञान का दुरुपयोग कर रहे हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आत्मा ज्ञान सूचिक होती है।ज्ञान दो प़कार का होता है, बाहरी ज्ञान, और आत्म ज्ञान।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जीवन में आत्मज्ञान होना आवश्यक है, जिससे पापों से मुक्ति का निमित्त बनता है। वह ज्ञान बेकार है, जिसमें क़िया न हो। जो पुण्य और पाप मान कर चल रहे हैं,वह ज्ञान का दुर्पयोग करते हैं। अतः जब तक आत्मज्ञान नहीं होगा अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं।
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आत्मा ज्ञान सूचिक होती है।ज्ञान दो प़कार का होता है, बाहरी ज्ञान, और आत्म ज्ञान।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जीवन में आत्मज्ञान होना आवश्यक है, जिससे पापों से मुक्ति का निमित्त बनता है। वह ज्ञान बेकार है, जिसमें क़िया न हो। जो पुण्य और पाप मान कर चल रहे हैं,वह ज्ञान का दुर्पयोग करते हैं। अतः जब तक आत्मज्ञान नहीं होगा अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं।