घर का कोई कार्य/ आयोजन आपकी इच्छानुसार न हो, तो दु:ख होता है।
यदि इच्छानुसार हो, तो फूले नहीं समाते हैं।
पहली स्थिति में यही चिंतन करें–
दु:ख तो है, पर इसका फल—> आर्तध्यान—> तिर्यंच गति।
दूसरी स्थिति का फल-> रौद्र ध्यान—> नरक गति।
विचार करें– किसमें ज्यादा नुकसान है!
चिंतन
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ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता होना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं,आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। इनमें पहिले दो ध्यान संसार बढ़ाने वाले होते हैं, जबकि धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सहायक होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि दुःख तो है,पर इसका फल आर्त ध्यान यानी तिर्यंच गति, जबकि रौद्र ध्यान का नरक गति होती है। इसका चिंतन करना अपने हाथ में है कि किसमें कम/ ज्यादा नुकसान है। अतः जीवन में कभी आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान करने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें कभी कल्याण नहीं हो सकता है।
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ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता होना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं,आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। इनमें पहिले दो ध्यान संसार बढ़ाने वाले होते हैं, जबकि धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सहायक होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि दुःख तो है,पर इसका फल आर्त ध्यान यानी तिर्यंच गति, जबकि रौद्र ध्यान का नरक गति होती है। इसका चिंतन करना अपने हाथ में है कि किसमें कम/ ज्यादा नुकसान है। अतः जीवन में कभी आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान करने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें कभी कल्याण नहीं हो सकता है।