आस्तिक्य
आस्तिक्य गुण का अर्थ यह नहीं है कि मात्र अपने अस्तित्व को ही स्वीकार करना,
बल्कि…
दुनिया में जितने पदार्थ हैं, उनको यथावत/ उसी रूप में स्वीकार करना ।
जो दूसरों में जीवत्व को देखता है, उसे ही आचार्यों ने आस्तिक कहा है अन्यथा वह नास्तिक है ।
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज
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आस्तिक्य का मतलब सच्चे देव शास्त्र गुरु और तत्त्व को मानना होता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने सही कहा है कि जो दूसरों में जीवन देखता है उसे आस्तिक कहा गया है अन्यथा वह नास्तिक होता है।