इंद्रिय

नामकर्म से रची, वह इंद्रिय है, आत्मा का लिंग इंद्रिय है ।
आत्मा कर्मों से मलिन है इसलिये पदार्थों को ग्रहण करने में असमर्थ है,
इंद्रियाँ पदार्थों को ग्रहण करने में निमित्त है ।

तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी

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