उत्तम तप
■ इच्छा निरोधः तपाः
आचार्य श्री विद्या सागर जी
■ आचार्य श्री विद्या सागर जी ने उपवास शुरू किये । मुनिजन आहार के लिए रोज कमंडल ले जाते पर आचार्य श्री एक-एक करके उपवास बढ़ाते चले जा रहे थे । 10वें दिन मुनिजन कमंडल नहीं ले गये, यह सोचकर कि अब तो आचार्य श्री 10 उपवास पूरे करेंगे ही । पर आचार्य श्री आहार के लिए उठ गये ।
आचार्य श्री–उपवास record बनाने के लिए नहीं किये जाते हैं बल्कि साधना को निखारने के लिए किये जाते हैं । मेरे पैरों में कंपन शुरू हो गया था, और उपवास मेरी साधना में बाधक बन जाता ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
■ तप = “पर” वस्तुओं को अपना न मानना ।
• कर्म और विकारों को क्षय करने के लिए तप है ।
• तप 2 प्रकार के…
1) बाह्य – अनशन, ऊनोदर(भूख से कम खाना), वृत्ति परिसंख्यान(नियम मिलने पर ही खाना), रसपरित्याग, विवित्तशय्यासन(एकांत में सोना), कायक्लेश(शरीर को कष्ट में रखकर तपना)
2) अंतरंग – प्रायश्चित, विनय, वय्यावृत्ति(गुरुजनों की सेवा), स्वाध्याय,व्युत्सर्ग(ममत्व छोड़ना), ध्यान
मुनि श्री अविचल सागर जी
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यह कथन सत्य है कि तप साधना के निखारने के लिए किया जाता है। अतः तप का मतलब पर वस्तुओं को अपना न मानना।तप भी संयम के बिना नहीं हो सकता हैं। ्