अवगुणों को छोड़ने का मन बना लें, उन्हें ग्रहण न करें, इसी का नाम त्याग है।
मुनि श्री क्षमासागर जी
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त्याग का तात्पर्य सचेतन, अचेतन समस्त परिग़ह की निवृत्ति कोई कहते हैं इसके अलावा परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु को देना है। अपनी वस्तु को संयमी के योग्य ज्ञान दान होता है। अतः मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का कथन सत्य है अवगुणों को छोड़ने का मन करता है, उसे ग़हण न करें, इसी का नाम त्याग है।
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त्याग का तात्पर्य सचेतन, अचेतन समस्त परिग़ह की निवृत्ति कोई कहते हैं इसके अलावा परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु को देना है। अपनी वस्तु को संयमी के योग्य ज्ञान दान होता है। अतः मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का कथन सत्य है अवगुणों को छोड़ने का मन करता है, उसे ग़हण न करें, इसी का नाम त्याग है।