चक्रवर्ती का भोजन रानियाँ नहीं, रसोइये ही बनाते हैं, पर मुनि का आहार रानियाँ ही बनाती हैं ।
पर मुनि की अनुमोदना ना होने से/यह वहाँ की व्यवस्था होने से उदिष्ट दोष से रहित है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
उदिष्ट आहार-दाता और पात्र की अपेक्षा आहार दो प़कार का होता है।दाता यदि अधःकर्म सबंध सोलह उद्गगम दोषो से युक्त आहार साधु को देता है, वह दाता संबंध उदिष्ट आहार होता है।
यदि पात्र अर्थात साधु अपने लिए स्वयं आहार बनाए या बनवाए या आहार के उत्पादश संबंधी का विकल्प रखता है वह उदिष्ट आहार कहलाता है।अतः उचित है कि उदिष्ट आहार का निषेध करना चाहिए ताकि दाता और पात्र का कल्याण हो सकता है।
One Response
उदिष्ट आहार-दाता और पात्र की अपेक्षा आहार दो प़कार का होता है।दाता यदि अधःकर्म सबंध सोलह उद्गगम दोषो से युक्त आहार साधु को देता है, वह दाता संबंध उदिष्ट आहार होता है।
यदि पात्र अर्थात साधु अपने लिए स्वयं आहार बनाए या बनवाए या आहार के उत्पादश संबंधी का विकल्प रखता है वह उदिष्ट आहार कहलाता है।अतः उचित है कि उदिष्ट आहार का निषेध करना चाहिए ताकि दाता और पात्र का कल्याण हो सकता है।