1. उपाध्याय पद दीक्षित गुरु ही देते हैं ।
2. अपने संघ के मुनियों को ही पढ़ाते हैं ।
3. वर्तमान के अपने तथा दूसरे मतों का पूर्ण ज्ञान हो ।
4. अन्यथा वे उपाध्याय परमेष्ठी नहीं कहलाये जा सकते ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपाध्याय का तात्पर्य जो साधु जिनागम का उपदेश करते हैं, स्वयं पढ़ते और अन्य साधुओं को पढ़ाते हैं। इनको दीक्षा व प्रायश्चित आदि क़ियायों को छोड़कर वे आचार्य के सम्पूर्ण गुणों से परिपूर्ण होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि उपाध्याय पद दीक्षित गुरु ही देते हैं, अपने संघ के मुनियों को पढ़ाते हैं, वर्तमान के अपने तथा दूसरे मतों का पूर्ण ज्ञान होता है, अन्यथा वे उपाध्याय परमेष्ठि नहीं कहे जा सकते हैं।
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उपाध्याय का तात्पर्य जो साधु जिनागम का उपदेश करते हैं, स्वयं पढ़ते और अन्य साधुओं को पढ़ाते हैं। इनको दीक्षा व प्रायश्चित आदि क़ियायों को छोड़कर वे आचार्य के सम्पूर्ण गुणों से परिपूर्ण होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि उपाध्याय पद दीक्षित गुरु ही देते हैं, अपने संघ के मुनियों को पढ़ाते हैं, वर्तमान के अपने तथा दूसरे मतों का पूर्ण ज्ञान होता है, अन्यथा वे उपाध्याय परमेष्ठि नहीं कहे जा सकते हैं।