कर्मों का क्रम
1. ज्ञानावरण – ज्ञान की पूज्यता सो पहले
2. दर्शनावरण – ज्ञान से संबंध।
दोनों आत्मा के अनुजीवी गुण
3. वेदनीय – जानकर/देखकर सुख/दु:ख का वेदन
4. मोहनीय – मोह ज्ञान से, जानते रहें भूल न जांय; दु:ख न मिले
5. आयु – शरीराश्रित
6. नाम – शरीर रचना
7. गोत्र – उच्च/नीच, शरीर पाने के बाद
8. अंतराय – सब कर्मों में अंतराय डालता है
यह क्रम जीव के उपकार की अपेक्षा है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
कर्मों का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ क़िया या कर्म होता है,यह तीन प़कार के होते हैं,द़व्य,भाव कर्म एवं नोकर्म।
मुनि महाराज ने कर्मों का क़म बताया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में कर्मों का काटने का प्रयास करना चाहिए ताकि बुरे कर्मों की जगह अच्छे कर्मों की आवश्यकता है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।