जिस अनुभाग व स्थिति से कोई कर्म-बंध होता है, उसी अनुभाग व स्थिति से 7 कर्मों में विभाजन होता है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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कर्म–जीव मन वचन और काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है यह सब उसकी क़िया या कर्म है।
बन्ध—कर्म का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना बंध कहलाता है।यह दो प्रकार के होते हैं भाव-बंध और द़व्य बंध होते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि जिस अनुभाग व स्थिति से कोई कर्म-बंध होता है,उसी अनुपात व स्थिति से सात कर्मों में विभाजन होता है।
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कर्म–जीव मन वचन और काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है यह सब उसकी क़िया या कर्म है।
बन्ध—कर्म का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना बंध कहलाता है।यह दो प्रकार के होते हैं भाव-बंध और द़व्य बंध होते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि जिस अनुभाग व स्थिति से कोई कर्म-बंध होता है,उसी अनुपात व स्थिति से सात कर्मों में विभाजन होता है।