क्षयोपशमिक भाव
5 ज्ञानों में से 4 क्षयोपशमिक हैं। क्षयोपशम में 3 क्रियाएँ होती हैं। –
1 कुछ सर्वधाती स्पर्धकों (शक्तियों) को बदल देते हैं यानि उन्हें उदयाभावी क्षय (स्वमुख उदय में न आने देना)।
2. इन्हीं शक्तियों को कुछ समय के लिये दबाये रखना (जब तक काम चल रहा है)- सद्वस्था रूप उपशम।
3. कुछ देशघाती स्पर्धक काम करने लग जाती हैं – उदय।
जैसे रत्न पर मोटे कण थोड़े हटे, थोडे रह गये, थोड़ी चमक दिखने लगती है।
इन तीनों के साथ श्रयोपशमिक भाव होता है।
उसी से हमारा ज्ञान काम करता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 300)
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने क्षयोपशमिक भाव का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में क्षयोपशमिक भाव होना चाहिए ताकि हमारा ज्ञान काम करता है।