एक इंद्रीय जल से भी वह गुण ग्रहण कर सकते हैं जो हम में भी नहीं हैं ।
जल भगवान के शरीर को स्पर्श करके गंधोदक तक बन जाता है,
हम तो वर्षों से स्पर्श कर रहे हैं, फिर भी वैसे के वैसे ही !
मुनि श्री सुधासागर जी
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One Response
गुण का मतलब एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है। गुण साधारण और असाधारण होते हैं। चेतना, ज्ञान, दर्शन आदि जीव के विशेष गुण होते हैं। जीव में मोहऔर योग के माध्यम से उतार चढ़ाव होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि एक इन्द़िय जल से भी गुण ग़हण कर सकते हैं जो पांच इन्द़ियों में नहीं है। अतः जल भगवान् के शरीर से स्पर्श से गंधोदक बन जाता है वही गंधोदक हम लोगों का स्पर्श से कल्याण होता है जबकि मनुष्य जीव मोह और योग के कारण उतार चढ़ाव होता है जिसके कारण हम लोग वैसे के वैसे ही रहते हैं।
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गुण का मतलब एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है। गुण साधारण और असाधारण होते हैं। चेतना, ज्ञान, दर्शन आदि जीव के विशेष गुण होते हैं। जीव में मोहऔर योग के माध्यम से उतार चढ़ाव होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि एक इन्द़िय जल से भी गुण ग़हण कर सकते हैं जो पांच इन्द़ियों में नहीं है। अतः जल भगवान् के शरीर से स्पर्श से गंधोदक बन जाता है वही गंधोदक हम लोगों का स्पर्श से कल्याण होता है जबकि मनुष्य जीव मोह और योग के कारण उतार चढ़ाव होता है जिसके कारण हम लोग वैसे के वैसे ही रहते हैं।