जिसके बल से संसार के कारणों से आत्मा की रक्षा होती है।
आगम भाषा में जिसे गुप्ति हैं, अध्यात्म में उसे ध्यान कहते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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गुप्ति का तात्पर्य संसार के कारण रागादि से आत्मा की रक्षा करें उसको कहते हैं, अथवा मन वचन काय की स्वच्छंदता प़वृति को रोकना होता है,यह तीन प़कार की होती है,मनोगुप्ति, वचन गुप्ति एवं काय गुप्ति। उपरोक्त कथन सत्य है कि गुप्ति के बल से संसार के कारणों पर आत्मा की रक्षा होती है।यह भी कथन सत्य है आगम भाषा में जिसे ध्यान कहते हैं, अध्यात्म में उसे गुप्ति कहते हैं। उपरोक्त गुप्तियां प़त्येक गुरु एवं साधुओं को आवश्यक है ताकि वह अपना कल्याण करने में समर्थ रहते हैं।
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गुप्ति का तात्पर्य संसार के कारण रागादि से आत्मा की रक्षा करें उसको कहते हैं, अथवा मन वचन काय की स्वच्छंदता प़वृति को रोकना होता है,यह तीन प़कार की होती है,मनोगुप्ति, वचन गुप्ति एवं काय गुप्ति। उपरोक्त कथन सत्य है कि गुप्ति के बल से संसार के कारणों पर आत्मा की रक्षा होती है।यह भी कथन सत्य है आगम भाषा में जिसे ध्यान कहते हैं, अध्यात्म में उसे गुप्ति कहते हैं। उपरोक्त गुप्तियां प़त्येक गुरु एवं साधुओं को आवश्यक है ताकि वह अपना कल्याण करने में समर्थ रहते हैं।