गोत्र / कुल

मुनिराज उच्च-कुलीन से आहार लेते हैं, उच्च-गोत्र से लेने का नियम नहीं, वरना देवता तो उच्च-गोत्री ही होते हैं; पर उनसे आहार नहीं लिया जाता।
दूसरी ओर कोई उच्च-गोत्री, जघन्य अपराध करके आहार देने की पात्रता खो देगा।

मुनि श्री सुधासागर जी

Share this on...

One Response

  1. मुनिराज कभी आहार लेने के लिए उच्च गोत्र का महत्व नहीं होता है बल्कि उच्च कुलीन यानी जिसके आचार विचार पवित्र होते हैं , उससे ही आहार लेने में समर्थ होते हैं, यदि उच्च गोत्री जघन्य अपराध करता है,वह अपनी पात्रता खो देता है, जैसे देवता उच्च गोत्री होते हैं,पर उनसे आहार नहीं लिया जाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मुनिराज को आहार देने वाले उच्च आचार विचार एवं जैन धर्म से जुडे रहते हैं,उसी को आहार देने की पात्रता होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

January 4, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930