छेदोपस्थापना
छेदोपस्थापना अनेक प्रकार का।
छेदोपस्थापना = पुरानी पर्याय (सामायिक चारित्ररूप) का छेदन करके आत्मा को एक यमरूप (अहिंसा)/ 5 यमरूप ( 5 व्रतरूप = अहिंसा + 4 रक्षा/ वृद्धि के लिये)।
आ.श्री → सामायिक चारित्र = अखंड मोती,
छेदोपस्थापना = मोती में छिद्र, हार बनाने।
1. एक भाव में ज्यादा देर नहीं रह सकते सो 5 व्रत, 28 मूलगुण।
2. व्रतों में प्रमाद, फिर से सामायिक चारित्र (अप्रमत्त) में आना। दोनों साथ-साथ इसलिए षट्खंडागम में दोनों एक पद में।
3. व्रतों में दोष, सो प्रायश्चित → उसी चारित्र में स्थापित।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड- गाथा 471)
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने छेदोपस्थापना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।